वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 के समर्थन में मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी

शीराज़ क़ुरैशी 
भारत की वक़्फ़ संपत्तियाँ—मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसे, दरगाहें और सामाजिक कल्याण के लिए दान की गई अचल संपत्तियाँ—लंबे समय से दुर्व्यवस्था, मुक़दमों और अनियमितताओं से जूझ रही हैं। वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 ने इन चुनौतियों का व्यवस्थित समाधान प्रस्तुत करते हुए पारदर्शिता, जवाबदेही तथा जनहित को प्राथमिकता दी है।

1. पारदर्शिता और डिजिटलीकरण
• राष्ट्रीय वक़्फ़ सूचना-प्रणाली (NWIS): अधिनियम प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश को 18 महीने के भीतर सभी वक़्फ़ अचल-संपत्तियों का भू-अभिलेख, मानचित्र और इमारती विवरण GIS-सक्षम पोर्टल पर अपलोड करने को बाध्य करता है। इससे ‘‘बेनामी’’ अथवा दोहरी प्रविष्टियों पर रोक लगेगी और आम नागरिक भी संपत्ति का सत्यापन कर सकेंगे।  
• खुला वार्षिक ऑडिट: 100 करोड़ रुपये से अधिक वार्षिक आय वाली वक़्फ़ों के वित्तीय विवरण अब CAG द्वारा ऑडिट-योग्य होंगे; छोटे वक़्फ़ो के लिए भी अनिवार्य डिजिटल बहीखाता प्रारूप निर्धारित किया गया है।  

2. सुदृढ़ प्रशासनिक सरंचना
• बहु-धार्मिक प्रतिनिधित्व: नई धारा 14-क के अनुसार प्रत्येक राज्य वक़्फ़ बोर्ड में एक गैर-मुस्लिम क़ानूनी विशेषज्ञ तथा एक महिला सामाजिक-कार्यकर्ता को नामित करना अनिवार्य है, ताकि हितधारक-वर्गों और लैंगिक दृष्टि से संतुलित निगरानी सुनिश्चित हो।  
• मुख्य कार्यपालक अधिकारी (CEO) के चयन-मानदंड कठोर किए गए हैं—सिविल सेवा के समूह-‘ए’ अधिकारी या 15 वर्ष का प्रशासनिक अनुभव। इससे राजनीतिक मनोनयन की संभावना घटेगी।

3. त्वरित विवाद निस्तारण
• विशेष वक़्फ़ न्यायाधिकरण: संशोधन 12 महीने की समय-सीमा और ऑनलाइन साक्ष्य-रिकॉर्डिंग की व्यवस्था लाता है। अपील सीधे उच्च न्यायालय में जाएगी, जिससे ‘‘फ़ोरम-शॉपिंग’’ घटेगी और वर्षों तक लंबित मुक़दमे निपटेंगे।  

4. समुदाय-कल्याण केंद्रित प्रावधान
• 50 % आय का सामाजिक उपयोग: शिक्षा-वृत्ति, स्वास्थ्य शिविर, महिला-स्वरोज़गार आदि पर न्यूनतम 50 % शुद्ध आय व्यय करना अनिवार्य किया गया है; उल्लंघन पर प्रशासक की नियुक्ति और दोगुना जुर्माना।
• ‘अमानत’ को पुनर्स्थापित करने का अधिकार: यदि किसी संपत्ति का धार्मिक स्वरूप बदल दिया गया है तो CEO को नोटिस देकर 30 दिन में मूल स्वरूप बहाल करना होगा; असहयोग पर ज़िला मजिस्ट्रेट बाध्यकारी सहायता देगा।

5. संवैधानिक तथा अंतरराष्ट्रीय मानक-संगति

अनुच्छेद 25-30 धार्मिक स्वतंत्रता के साथ राज्य के ‘‘संविधानिक पितृत्व’’ को संतुलित करती हैं। प्रशासनिक निगरानी बढ़ाने से अल्पसंख्यक अधिकार बाधित नहीं होते; बल्कि भ्रष्टाचार-रहित प्रबंधन से ही धार्मिक स्वतन्त्रता सुरक्षित रहती है। तुर्किये, मलेशिया एवं सऊदी अरब की ‘‘जन सेवा कोष’’ (Awqaf) मॉडल रिपोर्टें भी समान डिजिटल-पारदर्शी व्यवस्थाएँ सुझाती हैं।  

वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 मुस्लिम सामुदायिक संपत्तियों की सुरक्षा, कुशल प्रबंधन और सामाजिक न्याय को सशक्त करता है। पारदर्शी डिजिटल प्लेटफॉर्म, पेशेवर प्रशासन, समयबद्ध न्याय और समाज-कल्याण-केंद्रित व्यय न केवल दानदाताओं के विश्वास को पुनर्स्थापित करेंगे, बल्कि वक़्फ़ की मूल ‘फ़लाह-ए-इन्सानियत’ (मानव-कल्याण) भावना को भी पुनर्जीवित करेंगे। इसलिए यह अधिनियम न्यायिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से समयोचित सुधार है, जिसका समर्थन मुस्लिम समाज ही नहीं, समस्त भारत के प्रगतिशील नागरिकों को करना चाहिए।
मुस्लिम समाज ने कुल १२ इंटरविनर याचिकाओं को भी वक़्फ़ संशोधन अधिनियम के समर्थन में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पेश किया है जहाँ ये दलील दी जाएगी कि पूरा मुस्लिम समाज वक़्फ़ संशोधन का विरोध नहीं कर रहा है बल्कि मुस्लिम समाज वक़्फ़ संशोधन अधिनियम २०२५ का समर्थन भी कर रहा है! 

समझिए कि विरोध की जड़ में क्या है

1. राजनीतिक पूँजी बनाना: कुछ नेता ख़ुद को “क़ौमी रक्षक” दिखाकर आगामी निकाय/लोकसभा चुनावों में लाभ चाहते हैं।
2. पुराने सत्ता-समूहों का असुरक्षित अनुभव: बोर्ड-स्तर पर पेशेवर भर्ती से उन व्यक्तियों की पकड़ ढीली पड़ सकती है जो वर्षों से बिना योग्यता के पदों पर हैं।
3. जानकारी का अभाव: डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म, CAG ऑडिट, 50 % सामाजिक व्यय जैसे प्रावधानों का विस्तृत पाठ अधिकांश लोगों ने पढ़ा ही नहीं।

प्रचलित दावें और उनके जवाब ठोस :
“सरकार वक़्फ़ ज़मीनें हड़पना चाहती है”
धारा 91-ख में साफ़ प्रावधान है कि किसी वक़्फ़ संपत्ति का अधिग्रहण तभी हो सकता है जब बोर्ड की मंज़ूरी हो और पूरी बाज़ार-क़ीमत वक़्फ़ विकास कोष में जमा हो। मालिकाना हक़ राज्य को हस्तांतरित नहीं होता।  
“धर्म‐स्वतंत्रता पर चोट है”
संशोधन प्रशासनिक पारदर्शिता (ऑडिट, डिजिटलीकरण, CEO की योग्यता) से जुड़ा है; नमाज़, इमामत, मज़हबी रस्मों में कोई दख़ल नहीं। यही बिन्दु सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2025 की सुनवाई में रेखांकित किया—वह केवल अंतरिम राहत पर सुनवाई कर रहा है, कानून निलंबित नहीं।  
“यह मुस्लिम पहचान मिटा देगा”
तुर्किये, मलेशिया, खाड़ी देशों के Awqaf मॉडलों में इसी तरह के ऑनलाइन रजिस्टर और सामाजिक-कल्याण कोटा हैं; वहाँ मुस्लिम पहचान सुरक्षित ही रही है।  

लेखक : शीराज़ क़ुरैशी वरिष्ठ अधिवक्ता है,भारत फर्स्ट के राष्ट्रीय संयोजक
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