हाल ही में जम्मू-कश्मीर के सुंदर पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए कायरतापूर्ण आतंकी हमले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद भारत की एकता, शांति और सभ्यता को ललकार रहा है। इस हमले में निर्दोष लोगों की जान गई, और यह हमला पाकिस्तान में पलने वाले आतंकवादी संगठनों की ओर से रचा गया षड्यंत्र था। ऐसे में भारत सरकार और सेना द्वारा चलाया गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक नैतिक, राष्ट्रीय और आध्यात्मिक दायित्व की पूर्ति है।
‘सिन्दूर’ का प्रतीकात्मक अर्थ
‘सिन्दूर’ भारतीय संस्कृति में मंगल, शक्ति और रक्षा का प्रतीक है। ऑपरेशन का यह नाम यह दर्शाता है कि यह कार्यवाही केवल बदले की भावना नहीं, अपितु राष्ट्र की रक्षा, धर्म की मर्यादा और जनता की शांति हेतु है।
धार्मिक प्रेरणा: धर्मयुद्ध का सिद्धांत
भारत का यह प्रतिउत्तर धर्मयुद्ध की भावना से प्रेरित है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
“हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः॥”
(गीता 2.37)
“या तो युद्ध में वीरगति पाकर स्वर्ग प्राप्त करोगे या विजयी होकर पृथ्वी का सुख भोगोगे, इसलिए हे कौन्तेय! युद्ध के लिए दृढ़ संकल्प होकर खड़े हो जाओ।”
यह श्लोक भारतीय सेना और नेतृत्व को यह प्रेरणा देता है कि जब अन्याय और आतंक सिर उठाए, तो क्षमा नहीं, शक्ति का प्रयोग धर्मसम्मत होता है।
पाकिस्तान की भूमिका और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण:
पाकिस्तान की भूमि से बार-बार भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ संचालित होती रही हैं। भारत ने संयम का परिचय दिया, बार-बार शांति का हाथ बढ़ाया, परंतु ‘सज्जनों की शांति को दुर्बलता समझना’ हमारी नीति नहीं हो सकती। ऑपरेशन सिंदूर एक सटीक सन्देश है — भारत अब चुप नहीं बैठेगा।
“दुष्टं दण्डयेत् शास्त्रज्ञो न निर्गुणमपीश्वरः।
सुगुणोऽपि परित्याज्यो यत्र दोषोऽतिभूरणः॥”
(नीतिशतक)
“शास्त्रज्ञ व्यक्ति को दुष्ट का दण्ड देना चाहिए। यदि किसी में अधिक दोष है, तो उसके गुणों की भी उपेक्षा कर देना उचित है।”
राष्ट्र धर्म सर्वोपरि:
भारतवर्ष का धर्म सदा से शांति, सहिष्णुता और करुणा रहा है, लेकिन जब इन मूल्यों पर आघात होता है, तो वीरता ही धर्म बन जाती है।
“धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्॥”
(मनुस्मृति 8.15)
“जो धर्म का नाश करता है, वह स्वयं नष्ट होता है; जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा धर्म करता है। इसलिए कभी भी धर्म का त्याग न करें।”
“हमने उनको मारा जिन्होंने हमें नुक़सान पहुँचाया” — यह कोई क्रोध की भाषा नहीं, यह न्याय का उद्घोष है। जब निर्दोष पर्यटकों/ नागरिकों की हत्या की जाती है, जब माताएं अपने बेटे खोती हैं, पत्नियाँ अपने पति और सैनिकों पर छिपकर हमले किए जाते हैं, तब सहनशीलता पाप बन जाती है और प्रतिशोध धर्म।
ऑपरेशन सिंदूर, भारत का पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों पर सटीक और साहसी प्रहार, एक राष्ट्र के धर्म का, उसके गौरव का और उसकी अस्मिता का जीवंत प्रतीक है।
हनुमान जी का लंका दहन: प्रतीकात्मक उदाहरण
रामायण में जब रावण ने माँ सीता का हरण कर उन्हें लंका में बंदी बनाया, तो भगवान राम के दूत हनुमान जी वहाँ पहुँचे। राक्षसों ने उन्हें अपमानित किया, उनकी पूँछ में आग लगाई। हनुमान जी ने वह अपमान नहीं सहा — उन्होंने पूरी लंका को जला दिया।
“दिष्ट्या हता राक्षसाः पापकर्माणो ह्यनेकशः।
लङ्कां दग्ध्वा पुनः प्राप्तः त्वं दूतः श्रेयसी मतिः॥”
(वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड)
“पापी राक्षसों का संहार कर, लंका को जला कर, तू पुनः लौट आया — यह कार्य एक आदर्श दूत का है।”
भारत ने भी वही किया — जिसने देश पर चोट की, उसे दण्डित किया। न अशांत मन से, न अहंकार से — बल्कि धर्म और कर्तव्य से प्रेरित होकर।
भारतीय सेना का पराक्रम: एक वीरगाथा
भारतीय सेना केवल एक सैन्य संगठन नहीं — यह एक जीवंत संकल्प है, जिसमें हर सैनिक यह व्रत लेकर चलता है:
“स्वदेशे पुण्यं, परदेशे रणं।
विजय ही धर्म है, और शांति उसका फल।”
सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयरस्ट्राइक, और अब ऑपरेशन सिंदूर — यह सब उदाहरण हैं कि भारतीय सेना चुप नहीं बैठती, वह अपने प्रत्येक शहीद की शपथ लेती है।
“शत्रुना विनाशाय स्वजनस्य हिताय च।
धर्मसंस्थापनार्थाय वीरः संजायते पुनः॥”
“शत्रुओं के विनाश और अपनों के हित के लिए, धर्म की स्थापना हेतु वीर बार-बार जन्म लेते हैं।”
प्रधानमंत्री मोदी जी का नेतृत्व: दृढ़ संकल्प और साहस की मिसाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की विदेश नीति को “शांति की भी नीति और पराक्रम की भी नीति” के रूप में परिभाषित किया है। उनके नेतृत्व में भारत ने ‘सहिष्णु भारत’ से ‘सशक्त भारत’ की ओर यात्रा की है।
“ना हम छेड़ते हैं, ना हमें कोई छोड़े
पर जो हमें छेड़े, वो फिर छोड़ न पाए।”
मोदी जी के स्पष्ट संकल्प ने यह सिद्ध किया कि आतंकवाद के विरुद्ध केवल निंदा नहीं, निर्णायक कार्यवाही ही स्थायी समाधान है।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥”
(भगवद्गीता 2.47)
“तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं; इसलिए फल की इच्छा से प्रेरित मत हो और न ही कर्म न करने में आसक्त हो।”
मोदी जी ने भी यही किया — उन्होंने फल की चिंता किए बिना आतंकवाद के मूल पर प्रहार किया।
धर्म और राष्ट्रधर्म की विजय:
ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक परंपरा और राजनैतिक नेतृत्व की त्रिवेणी है। यह लंका-दहन की आधुनिक पुनरावृत्ति है, जिसमें भारत ने आतंक रूपी रावण की नगरी को चेतावनी दी है।
“विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्मसंस्थापनार्थाय।
सम्भवामि युगे युगे॥” (गीता 4.8)
आज भारत वही धर्म की रक्षा कर रहा है — नीति से, बल से, और आत्मगौरव से।
ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य शक्ति, राजनीतिक संकल्प और सांस्कृतिक मूल्यों का एक सशक्त प्रदर्शन है। यह संदेश केवल पाकिस्तान को ही नहीं, अपितु विश्व को है — भारत शांति चाहता है, पर कायर नहीं है। शांति तब तक संभव नहीं जब तक आतंक का जड़ से नाश न हो।
“नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥”
“सिंह का न तो अभिषेक होता है, न संस्कार। वह अपने पराक्रम से ही जंगल का राजा बनता है।”
भारत भी अब उसी सिंह की भाँति आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी और प्रहार-क्षम राष्ट्र के रूप में उभर रहा है।
(लेखक: शीराज़ क़ुरैशी वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ ही राष्ट्र भक्त भारत फर्स्ट के राष्ट्रीय संयोजक भी है)