अमेरिकी सिंहासन से जारी होते तुगलकी फरमान

डॉ. रवीन्द्र अरजरिया
अमेरिका की स्थित निरंतर असहज होती जा रही है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर से लेकर घरेलू मामलों तक में वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फरमान मुहम्मद तुगलक की याद ताजा करने लगे हैं। मुहम्मद तुगलक व्दारा अपनी राजधानी का स्थानान्तरण दिल्ली से दौलताबाद और फिर दौलताबाद से दिल्ली करने से लेकर चमडे के सिक्के चलाने तक के किस्से आज भी चटखारे लेकर कहे-सुने जाते हैं। ऐसा ही कुछ हाल डोनाल्ड ट्रंप का भी नजर आ रहा है। कभी टैरिफ को लेकर विवादास्पद बने तो कभी एपल, सैमसन जैसी कम्पनियों को धमकी देने नजर आये। कभी हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों के दाखिले पर प्रतिबंध लगाया तो कभी विदेशी अतिथियों के साथ ह्वाइट हाउस में अभद्र व्यवहार किया। विचित्र मानसिक स्थिति से गुजर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति का व्यवहार इन दिनों पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। कभी आपरेशन सिंदूर को रुकवाने का श्रेय लेने के लिए आगे आते हैं तो कभी अपनी ही बात से पीछे हट जाते हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के साथ खनिज अनुबंध को लेकर दबाव बनाने के दौरान गर्मागर्म बहस होने के बाद अभी हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोस को कथित रूप से फर्जी वीडियो दिखाकर रंग-भेद पर उनकी बौखलाहट देखते ही बनी।  उन्होंने अपने सहयोगी इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू तक को वहां की आन्तरिक नीतियों पर नहीं बक्सा था। ट्रंप ने तो इजरायल को उसके कट्टर दुश्मन तुर्किये तथा ईरान तक के साथ तर्क संगत करने की सीख तक दे दी थी। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ट्रंप की मुलाकात न केवल सम्मानजनक वातावरण में हुई थी बल्कि आतिथ्य देने वाले ने मोदी की जमकर प्रशंसा भी की थी। उन्होंने कहा था कि यह मुझसे कहीं ज्यादा सख्त वार्ताकार हैं, इनसे कोई मुकाबला ही नहीं है। ईमानदाराना बात तो यह है कि भारत की बढती अर्थ व्यवस्था, शीर्ष पर पहुंचती प्रतिभायें, आत्मनिर्भरता का ऊपर उठता ग्राफ, तकनीकी प्रगति, स्वदेशी हथियारों की बाढ, विदेश नीति का फहराता परचम, आन्तरिक स्थिरता जैसे अनगिनत कारण है जो अमेरिका के माथे पर उभर रही चिन्ता की लकीरों को निरंतर गहरा कर रहे हैं। रूस, यूक्रेन, फ्रांस, इटली, जापान, जर्मनी जैसे देशों के साथ भारत ने संतुलित संबंध स्थापित किये हैं जिनके कारण दुश्मन की कूटनैतिक चालों से लेकर घातक षडयंत्रों तक पर नियंत्रण लगना शुरू हो गया है। बंगला देश के माध्यम से भारत को तनाव देने की अमेरिकी चाल असफल रही तो चीनी झांसे में आकर मालदीप और श्रीलंका की अल्पकाल के लिए खराब हुई बुध्दि फिर से सकारात्मक हो गई। पाकिस्तान के कंधे पर रखकर चीन और अमेरिका ने एक साथ बंदूकें चलाई थीं। जहां अमेरिका ने आतंक के संरक्षक को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्जा दिलवाया, विश्व बैंक से राहत दिलवायी, कूटनैतिक चालें चलीं वहीं चीन ने उसे प्रत्यक्ष समर्थन ही नहीं दिया बल्कि युध्द हेतु अत्याधुनिक साज-ओ-सामान सहित अपनी सैटलाइट सुविधा तक उपलब्ध करायी। वर्तमान में दुश्मनों व्दारा एक साथ मिलकर भारत की बहुमुखी तरक्की को रोकने के लिए घिनौनी चालें, खतरनाक षडयंत्र और छद्म युद्ध जैसे हथियारों का खुलकर उपयोग किया जा रहा है। भारत की साख को बट्टा लगाने के अवसर पैदा करने की चल रही कोशिशों को तूफानी गति दी जा रही है। इस बार अमेरिका का राष्ट्रपति बनने से पहले ही ट्रंप ने रूस-यूक्रेन तथा इजरायल-हमास के मध्य चल रहे युध्द को रुकवाने की गारंटी दी थी। कुछ समय तक प्रयास भी किये परन्तु जब सफल नहीं हुए तो टैरिफ को हथियार बनाकर दुनिया को गुलाम बनाने की पहल शुरू कर दी। अनेक देशों के कडे रुख के कारण वे पूरी तरह सफल नहीं हुए। अनेक अवसरों पर उन्हें अपने कदम पीछे करने पडे। तुगलकी फरमानों के साथ-साथ बडबोलेपन के कारण भी ट्रंप को अब विदूषक के रूप में स्वीकारा जाने लगा है। यह एक मात्र ऐसे राष्ट्रपति है जिन्हें न्यायालय व्दारा दोषी करार दिया जा चुका है। मैनहटन क्रिमिनल कोर्ट के जस्टिस जुआन मरचैन ने उन्हें राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार के दौरान ही एक अडल्ट स्टार को मुंह बंद रखने के लिए एक लाख तीस हजार डालर का पेमेंट करने के मामले में दोषी मानते हुए बिना किसी पैनाल्टी के सजा सुनाई थी। दोषी व्यक्ति ने राष्ट्रपति का पद सम्हाला और फिर जुट गये मनमानियों को अमली जामा पहनाने में। अहंकार को पोषित करने, दुनिया का चौधरी बनने जैसे कारकों के कारण आज अमेरिका स्वयं विवाद का पर्याय बनकर स्थापित होने लगा है।  संवेदनशीलता के नाम पर दिखावा करने वाला अमेरिका को भारत का विकास फूटी आंखों भी नहीं सुहा रहा है। अमेरिकी सिंहासन से जारी होते तुगलकी फरमानों से पूरी दुनिया में मंदी का दौर निर्मित होने लगा है। व्यापार से लेकर आपसी संबंधों तक की चूलें हिलने लगीं हैं। नित नये हथकण्डे आजमाने, पर्दे के पीछे से खुराफातें करने और मानवता विरोधी मुहिम चलाने में लगे ट्रंप से देश-दुनिया को सावधान रहा पडेगा अन्यथा सीआईए के घातक नेटवर्क की दम पर विकासशील देशों में आन्तरिक युध्द की स्थितियां निर्मित होते देर नहीं लगेंगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।