समूची दुनिया में जंग के हालात पैदा होते जा रहे हैं। कहीं सत्ता के लिए गृह युद्ध की परिस्थितियां हैं तो कहीं पडोसियों के साथ संघर्ष का माहौल है। कहीं वर्चस्व की लडाई हो रही है तो कहीं अहंकार का परचम फहरा रहा है। ऐसे में व्यक्तिगत जीवन को विलासता के हिडोले पर पहुंचाने के लिए विदेशों में जाकर नौकरियां करने से लेकर शिक्षा लेने वालों की भीड अब देश के लिए संकट बनती जा रही है। स्वयं के निर्णय पर परदेश जाने वाले जब वहां संकट में घिर जाते हैं तब उनके परिजनों से लेकर विपक्षी नेताओं तक का दबाव सरकार पर डाला जाने लगता है। सुरक्षित वापसी का जिम्मा सरकार पर थोपा जाता है। इन प्रयासों में आने वाला खर्च भी टैक्सदाताओं की खून-पसीने की कमाई से चुकाया जाता है। विदेश नीति के तहत सरकार के कूटनैतिक प्रयास तेज किये जाते हैं। अतीत गवाह है कि रूस-यूक्रेन जंग में वहां से भारतीयों को निकालने में सरकार को भारी मसक्कत का सामना करना पडा था। उस दौरान नापाक धरती के वासिन्दों तक ने भारतीय झंडे की आड में सुरक्षित वापिसी की थी। उसकी पुनरावृत्ति एक बार फिर हो रही है। इजरायल-ईरान युद्ध छिड गया। वहां पर फंसे लोगों को निकालने का एक बार फिर दबाव बनाया गया। सरकार ने ‘आपरेशन सिंधु’ के तहत कूटनैतिक प्रयासों से लेकर निजी संबंधों तक की दुहाई दी। परिणामस्वरूप केवल भारतीयों के लिए ही ईरान से एयर स्पेस खोला। वहां के भारतीय दूतावास के माध्यम से नागरिकों को पहले अर्मेनिया और फिर कतर के रास्ते स्वदेश लाया गया था किन्तु अब ईरान की महन एयर की चार्टेर्ड प्लाइट्स का उपयोग किया जा रहा है। अभी तक तीन चरणों में लोगों की वतन वापिसी हुई है। दहशत के माहौल से वापिस आने वालों ने देश में पहुंचते ही सरकार को सुख-सुविधाओं की सूची पकडा दी। घरों तक पहुंचने के लिए बसों से यात्रा नहीं करेंगे, हवाई यात्रायें उपलब्ध कराई जायें, आरामदायक विश्राम हेतु आवास दिया जाये, मनचाहा भोजन कराया जाये। जम्मू-कश्मीर स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर ईरान से सुरक्षित वापिस लाये गये छात्रों की चार दिन की यात्रा को थकाऊ बताया तथा उन्हें बसों के स्थान पर हवाई यात्रा उपलब्ध कराने की मांग की। वहीं समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद ने तो सरकार पर वापिस आये लोगों के पुनर्वास तथा पढाई का जुम्मा तक थोप दिया। वंशानुगत चलने वाले कुछ राजनैतिक दलों के कद्दावर नेताओं और राष्ट्रविरोधी अभियानों का कथित नेतृत्व करने वाले संगठनों व्दारा मानवता, स्वाधीनता और अधिकार के नाम पर अशान्ति फैलाने के लिए हमेशा से ही प्रयास किये जाते रहे हैं। कभी जातिवाद का जहर घोला जाता रहा है तो कभी सम्प्रदायवाद की बारूद सुलगाई गई। कभी भाषा को मुद्दा बनाया तो कभी क्षेत्रवाद की खाई चौडी की गई। सकारात्मक परिणामों पर भी लाल स्याही फैलाने वाले लोग तो सीमापार बैठे अपने आकाओं के इशारों पर पूर्ववत विष वमन कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि कश्मीर से हिन्दुओं को भगाने वाले कट्टरपंथी परिवारों के हजारों छात्र वर्तमान में तेहरान, शीराज और कुम जैसे शहरों की शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश लिए हुए हैं। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार वहां के उरमिया विश्वविद्यालय सहित अनेक संस्थान कट्टरता के लिए कुख्यात हैं जिनमें तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ मजहबी तालीम के नाम पर जेहाद की ट्रेनिंग भी दी जाती है। देश में सक्रिय अनेक आतंकवादी संगठन अपने युवा सदस्यों को पढाई के नाम पर ईरान जैसे देशों में भेजकर प्रशिक्षिण दिलवाते हैं। वहां पर अत्याधुनिक हथियारों को चलाने, घातक बम बनाने तथा साइबर उपकरणों की प्रयोगात्मक शिक्षा दी जाती है। एक्सपोजर विजिट के नाम पर अन्य कट्टरपंथी देशों की यात्रायें भी करायी जातीं हैं जहां आतंकी संगठनों के उनका सीधा सम्पर्क हो जाता है। एक ओर देश के अन्दर राष्ट्रद्रोहियों की गतिविधियां सुनियोजित षडयंत्र के तहत चल रहीं है वही दूसरी ओर वर्तमान परिस्थितियों में भारत की विदेश नीति, कूटनीति और व्यवहारिक नीति दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी हुई है। जहां इजरायल-हमास, इजरायल-ईरान और रूस-यूक्रेन जैसे युद्ध लम्बे समय से चल रहे हैं वहीं भारत ने पाकिस्तान को चन्द घंटों में ही सबक सिखाकर अपना परचम फहरा दिया। दुनिया के चौधरी बनने का सपना सजोने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को आइना दिखाया। उनकी मध्यस्थता वाली घोषणा को सिरे से नकारा। उनके आमंत्रण को पूर्व निर्धारित व्यस्तताओं का हवाला देकर अपना इरादा जाहिर कर दिया। ऐसा ही संकेत तुर्किये को दिया। उसके शत्रु देश साइप्रस की देश के प्रधानमंत्री ने चौंकाने वाली यात्रा की। वहां के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस के साथ एक छत से पहाडियों को निहार कर वहां की विवादास्पद धरती के प्रति अपनी नीति उजागर कर दी। वैश्विक स्तर पर भारत की उभरती छवि से जहां अनेक विकसित राष्ट्रों के सीने पर सांप लोट रहे हैं वहीं उन राष्ट्रों के लिए काम करने वाले मीरजाफरों की जमातें आन्तरिक कलह के लिए देश के अन्दर धरातल तैयार करने में जुटीं हैं। चन्द सिक्कों, झूठे सम्मान और खोखले दबदबे के लालच में जमीर का सौदा करने वाले लोग तो सरकार के प्रत्येक कार्य को नकारात्मकता के लबादे में ढककर पेश करने से बाज नहीं आ रहे हैं। वर्तमान में ईरान से लौटे कश्मीरी छात्रों व्दारा पैदा किया गया घटनाक्रम इसी मानसिकता की एक और बानगी है जिसमें अहसान फरामोशों की जमात सुरक्षाकवच में आते ही अपना असली रंग दिखाने लगी है। विदेश प्रवास पर जाने के पहले क्या भारत सरकार से कोई अनुमति, स्वीकृति या अनुबंध किया था कि मुसीबत की घडी में सरकार उत्तरदायी होगी जिसके आधार पर दावेदारी निर्धारित की जा रही है, विलासता भरी सुविधाओं की मांग की जा रही है और दिये जा रहे हैं मनमाने वक्तव्य। मानवता, राष्ट्रीय निष्ठा और संवेदनशीलता के तहत किये गये नागरिकों की वापसी के सरकारी प्रयासों ने भारत की कूटनैतिक विजय के साथ-साथ सफल विदेश नीति का पुनः परचम फहरा दिया है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नयी आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।