गोरे धन में तेजी से तब्दील होता काला धन

गोया कि मै सच्चा भारतीय हूं इसलिए भारत की हर उपलब्धि पर खुश होता हूं और हर नाकामी पर लज्जित भी. चूंकि मै किसी लाभ- हानि के पद पर नहीं हूं इसलिए मुझे उपलब्धियों पर जश्न मनाने का तो हक है किंतु नाटामी पर इस्तीफ़ा देने की चिंता नहीं है.. पिछले 11 साल से देश की सत्ता के माध्यम से सेवा कर रहे भाजपा के अवतार पुरुष और देश के प्रधानमंत्री शकी सबसे बडी और ताजा उपलब्धि ये है कि   स्विस बैंकों में भारतीयों का जमा धन 2023 की तुलना में 2024 में तीन गुना बढ़कर 3.5 अरब स्विस फ्रैंक (लगभग 37,600 करोड़ रुपये) हो गया। स्थानीय शाखाओं और अन्य वित्तीय संस्थानों के माध्यम से स्विस बैंकों में रखे गए धन में भारी वृद्धि के कारण यह बढ़ोतरी हुई। 2023 में यह रकम चार वर्ष के निम्नतम स्तर 1.04 अरब स्विस फ्रैंक हो गई थी।
 भाजपा ने भरोसा तो ये दिलाया था कि सत्ता में आते ही सरकार स्विस बैंकों में जमा धशवापस लायेगी और हर मतदाता के खाते में 15-15लाख रुपये जमा कराएगी. लेकिन ये तो हो न सका, उलटे स्विस बैंकों के खाते लबालब हो गए.स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) के आधिकारिक आंकड़ों में स्विटजरलैंड में भारतीयों द्वारा रखे गए कथित काले धन के बारे में नहीं बताया गया है क्योंकि स्विट्जरलैंड भारतीयों के धन को काला धन  मानता ही नहीं है.। स्विट्जरलैंड कहता रहा है कि वह कर चोरी के खिलाफ लड़ाई में भारत का समर्थन करता है।
स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक द्वारा गुरुवार को जारी वार्षिक आंकड़ों के अनुसार इस दौरान भारतीयों के कस्टमर अकाउंट का रकम केवल 11 प्रतिशत बढ़कर 34.6 करोड़ स्विस फ्रैंक (लगभग 3,675 करोड़ रुपये) हो गया, जो कुल धन का केवल एक-तिहाई है।
वैसे 2023 में भारतीय व्यक्तियों और कंपनियों द्वारा स्विस बैंकों में स्थानीय शाखाओं और अन्य वित्तीय संस्थानों के माध्यम से जमा धनराशि में 70 प्रतिशत की गिरावट आई थी। 2021 के बाद से स्विस बैंकों में भारतीयों का जमा धन में सर्वाधिक वृद्धि हुई है.2021 में स्विस बैंकों में भारतीयों का कुल धन 14 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया था। इनमें वह धन भी शामिल नहीं है जो भारतीयों, एनआरआइ या अन्य लोगों ने तीसरे देश की संस्थाओं के नाम पर स्विस बैंकों में जमा किया है।
एसएनबी के आंकड़ों के अनुसार, 2006 में कुल राशि लगभग 6.5 अरब स्विस फ्रैंक के रिकार्ड उच्च स्तर पर थी। एसएनबी के अनुसार, भारतीय ग्राहकों के प्रति स्विस बैंकों की कुल देनदारियों के लिए डाटा में स्विस बैंकों में भारतीय ग्राहकों के सभी प्रकार के फंड को शामिल किया गया है, जिसमें व्यक्तियों, बैंकों और कंपनियों से जमा राशि शामिल है।इसमें भारत में स्विस बैंकों की शाखाओं के साथ-साथ गैर-जमा देनदारियों के डाटा भी शामिल हैं। 
मजे की बात ये है कि स्विट्जरलैंड और भारत के बीच कर मामलों में 2018 से सूचनाओं का स्वचालित आदान-प्रदान किया जा रहा है.लेकिन काला धन अंतरध्यान हो गया है. चूंकि स्विस सरकार भारतीयों के धन को काला धन नहीं मानती तो भारत सरकार की क्या मजाल कि वो भारतीयों के धन को काला कह दे ! भारतीय भले ही रंग से काले हों लेकिन दिल से काले बिलकुल नहीं हैं. उनका धन दूध की तरह सफेद है. भारतीय अपना धन भारतीय बैंकों में नहीं रखते, ये जरूर चिंता की बात है. भारतीयों को मोदी सरकार के बजाय स्विट्ज़रलैंड की सरकार पर ज्यादा भरोसा है. विश्वास का ये संकट भारत सरकार के लिए सबसे बडी चुनौती है.
दुर्भाग्य ये है कि भारत सरकार को ले विश्वास का संकट लगातार गहराता जा रहा है. आपरेशन सिंदूर के बाद सीजफायर को लेकर भी यही स्थिति है. लोग ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि सीज फायर भारत सरकार का अपना फैसला है. भारत पर न अमरीका को भरोसा है न चीन को. न रूस को भरोसा है न यूक्रेन को.यहाँ तक कि हमारे पडोसी तक भारत से ज्यादा चीन पर यकीन करने लगे हैं. कांग्रेस के बागी जरूर भारत सरकार पर, भाजपा पर यकीन करते हैं. हमारी सरकार को स्विस बैंकों के लबालव होने पर सोचना चाहिए. काश कि भारतीयों के धन से हमारी भारतीय स्टेट बैंकें लबालब होतीं. माई निर्मला सीतारमण जी स्विट्ज़रलैंड से बैंकों की विश्वसनीयता बढाने का फार्मूला उधार ले लीजिये न!
@ राकेश अचल