अमेरिका अपने स्लीपर सेल की दम पर समूची दुनिया में सरकारें बदलने का षडयंत्र लम्बे समय से करता आ रहा है। बांग्लादेश से लेकर श्रीलंका तक, कनाडा से लेकर स्कॉटलैंड तक और मेक्सिको से लेकर यूक्रेन तक अमेरिका ने हमेशा ही सरकार गठन के दौरान हस्तक्षेप किया है। वह विदेशों में वहां के मीरजाफरों की फौज एकत्रित करता है, उन्हें पैसों की चमक दिखाता है और फिर सरकार विरोधी दलों के साथ सांठगांठ करके अपने षडयंत्र की अमली जामा पहनाने में जुट जाता है। बांग्लादेश इसका जीता जागता उदाहरण है जहां उसने एक विशेष भू भाग हथियाने का प्रयास किया जिसमें सफल न होने पर वहां के सरकार विरोधियों के सहयोग से अपने पसन्दीदा व्यक्ति को सिंहासन पर बैठा दिया। यूक्रेन पर दबाव बनाकर अपने इच्छित समझौते पर हस्ताक्षर करवाने की कोशिश तो अमेरिकी राष्ट्रपति अपने ही घर में कर चुके हैं। अब भारत की बढती अर्थव्यवस्था और एक विशाल बाजार देखकर अमेरिकी राष्ट्र्रपति नित नये फरमान जारी करके दबाव बनाने की जी तोड कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान में दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत सम्मानित है। विगत चार सालों में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 6 प्रतिशत से अधिक ही रही है। वर्ष 2023 में यह आंकडा 9.2% तक जा पहुंच गया था। जबकि अमेरिका की अपनी जीडीपी ग्रोथ रेट वर्ष 2022 से 2025 के मध्य मात्र 3 प्रतिशत से ऊपर ही नहीं गई। अमेरिका की कुल आबादी से लगभग दो गुना लोग तो भारत में केवल नौकरीपेशा ही है। अभी हाल ही में इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी आईएमएफ के घोषणा की है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की अर्थव्यवस्था 6.5% की दर से बढ़ सकती है जो कि एक उपलब्धि होगी। ऐसे में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा भारतीय अर्थ व्यवस्था को डेड इकनॉमी बताकर अपनी षडयंत्रकारी प्रवृत्ति का स्वयं ही खुलासा कर दिया है। भारत के संसदीय सत्र के दौरान ट्रंप ने बयान दिया जिसके आधार पर नेता विपक्ष यानी राहुल गांधी ने तत्काल सरकार को घेरने की अपनी नाकाम कोशिश शुरू कर दी। यह अगल बात है कि उन्हें उनकी ही पार्टी के नेताओं ने ही आइना दिखा दिया। टैरिफ की गीदड़ भभकी देने वाले ट्रंप ने 7 अगस्त से अपना फरमान लागू करने की घोषणा कर दी है जिससे 69 देशों सहित पूरा यूरोपीय संघ सीधा प्रभावित हो रहा है। टैरिफ के अनुसार अफगानिस्तान पर 15, एलजीरिया पर 30%, अंगोला पर 15%, बांग्लादेश पर 20, बोलीविया पर 15, बोस्निया पर 30, हर्जेगोविना पर 30, बोत्सवाना पर 15, ब्राजिल पर 10, ब्रुनेई पर 25, कंबोडिया पर 19, कैमरून पर 15, कोस्टा रिका पर 15, कोटे डी आइवर पर 15, कांगो 15, इक्वेडोर पर 15, इक्वेटोरियल गिनी पर 15, यूरोपीय संघ पर 15, फाकलैंड द्वीप समूह पर 10, फिजी पर 15, घाना पर 15, गुयाना पर 15, आइसलैंड पर 15, भारत पर 25, इंडोनेशिया पर 19, इराक पर 35, इजराइल पर 15, जापान पर 15, जॉर्डन पर 15, कजाखस्तान पर 25, लाओस पर 40, लिसोटो पर 15, लीबिया पर 30, लिकटेंस्टाइन पर 15, मेडागास्कर पर 15, मलावी पर 15, मलेशिया पर 19, मॉरीशस पर 15, मोलदोवा पर 25, मोजाम्बिक पर 15, म्यांमार यानी बर्मा पर 40, नामिबिया पर 15, नाउरू पर 15, न्यूजीलैंड पर 15, निकारागुआ पर 18, नाइजीरिया पर 15, उत्तर मैसेडोनिया पर 15, नॉर्वे पर 15, पाकिस्तान पर 19, पापुआ न्यू गिनी पर 15, फिलिपींस पर 19, सर्बिया पर 35, दक्षिण अफ्रीका पर 30, दक्षिण कोरिया पर 15, श्रीलंका पर 20, स्विट्जरलैंड पर 39, सीरिया पर 41, ताइवान पर 20, थाईलैंड पर 19, त्रिनिदाद पर 15, टोबैगो पर 15, ट्यूनीशिया पर 25, टर्की पर 15, युगांडा पर 15, यूनाइटेड किंगडम पर 10, वानुअतु पर 15, वेनेजएला पर 15, वियतनाम 20, जाम्बिया पर 15 तथा जिम्बाब्वे पर 15 प्रतिशत टैरिफ देना होगा। सबसे ज्यादा टैक्स रेट वाले देशों में सीरिया को 41, स्विट्जरलैंड को 39, लाओस और म्यांमार को 40, इराक और सर्बिया को 35 और लीबिया और अल्जीरिया को 30 प्रतिशत की सीमा में रखा गया हैं जबकि ताइवान, भारत और वियतनाम जैसे अन्य देश 20 से 25 प्रतिशत की सीमा में हैं। इस सबके पीछे भारत का वैश्विक मंच पर बढता कद, स्वदेशी उत्पादन की वृद्धि, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का बढता ग्राफ, ब्रिक्स करैन्सी की योजना, रूस के साथ गहरे संबंध, चीन के साथ कायम होता संतुलन, मालदीप जैसे देशों का पुनः जागता भारत प्रेम जैसे अनेक कारण हैं जिनके कारण डोनाल्ड ट्रंप अपनी गिरती साख को बचाने के लिए मुहम्मद तुगलक बनकर एक पागल बादशाह का पर्याय बनते जा रहे हैं। अमेरिका ने पहली बार भारत पर षडयंत्र शस्त्र से आक्रमण नहीं किया है बल्कि इतिहास के पन्नों में उसकी घातक मानसिकता के संदर्भ भरे पडे हैं। सन् 1962 में भारत-चीन युद्ध होने के कारण देश के हालत चिन्ताजनक हो गये थे। उसके बाद सन् 1965 में भारत को पाकिस्तान से युद्ध करना पड गया। तब अमेरिका से आने वाले अनाज पर ही देश पूरी तरह निर्भर था। ऐसे में युद्ध के मध्य ही अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बेन्स जॉनसन ने भारत को अनाज देने से मना कर दिया था। उसका मानना था कि भारतवासी अब अमेरिका के सामने घुटना टेककर आत्मसमर्पण कर देंगें मगर देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने अपने नागरिकों के साथ मिलकर हरित क्रांति शंखनाद करके अमेरिका के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। इसी तरह सन् 1998 में परमाणु परीक्षण के दौरान भी अमेरिका ने भारत पर अनेक प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया किन्तु देश एक बार फिर अपने आत्मविश्वास की दम पर सीना ताने खडा रहा। आज देश में मिसाइलों से लेकर फाइटर जेट तक, कम्प्यूटर से लेकर मोबाइल फोन तक, अत्याधुनिक मशीनरीज से लेकर भारी संयत्रों तक का निर्माण हो रहा है। अंतरिक्ष से लेकर समुद्र की गहराइयों तक में भारत का डंका बज रहा है। ऐसे में दबाव की राजनीति, दमन का षडयंत्र और पीठ में छुरा भौंकने में माहिर अमेरिका अपनी खोखली धमकियों और देश में स्लीपर सेल के रूप में छुपे मीर जाफरों की दम पर भारत को एक बार फिर झुकाने का मंसूबा पाल बैठा है जो आने वाले समय में आत्मघाती कदम हो सकता है। आश्चर्य है कि डेड इकोनामी बताने के बाद भी ट्रंप की ललचाई नजरें भारत के रुख पर ही जमी हैं। दुनिया भर के विशेषज्ञों की घोषणाओं, शोध संस्थानों के प्रकाशनों और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी आईएमएफ की रिपोर्ट को नजरंदाज करके अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी तानाशाही, बचकाने वक्तव्यों और यू-टर्न वाले कृत्यों से दुनिया भर में उपहास का पात्र बनते जा रहे हैं। ऐसे में आम आवाम को एक बार फिर हरित क्रान्ति की तर्ज पर अमेरिका के सामानों का बहिष्कार करना होगा, स्वदेशी को पूरी तरह स्वीकारना होगा और लिखना होगी राष्ट्रहित की नई इबारत। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।