जुलाई 2025 में IMF की World Economic Outlook Update रिपोर्ट के प्रकाशन ने भारत की वृद्धि दर को 6.4% (calendar year 2025 एवं 2026 दोनों के लिए) तक संशोधित कर, इसे अप्रैल अनुमान (6.2%) से 0.2 प्रतिशत अंक अधिक बताया है। यह सुधार वैश्विक आर्थिक माहौल में सुधार, कम व्यापार बाधाओं, और सार्वजनिक निवेश तथा उपभोक्ता मांग में मजबूती से सम्बद्ध है। IMF ने स्पष्ट किया कि यह वृद्धि “reform momentum” और robust consumption के संयोजन से संभव हो पाई है, जिसमें रोजगार सृजन, कृषि से श्रमिकों को पुनः कौशल देना, भूमि सुधारों पर कदम, और व्यापार प्रतिबंधों की ओर कदम शामिल हैं ।
विश्व बैंक की Spring 2025 Poverty & Equity Brief रिपोर्ट ने विस्तार से बताया है कि भारत ने 2011‑12 की चरम गरीबी दर 16.2% से घटाकर 2.3% (2022‑23 में) कर दी है, और इस दौरान लगभग 171 मिलियन लोगों को चरम गरीबी से बाहर निकाला गया है । ग्रामीण क्षेत्र में यह गिरावट 18.4% से 2.8% तक और शहरी क्षेत्रों में 10.7% से 1.1% तक रही, जिससे ग्रामीण‑शहरी ग्राफ में अंतर भी उल्लेखनीय रूप से घटा है। विश्व बैंक की नई methodology में जो poverty threshold $3.00/day के अनुसार तय किया गया, उसके आधार पर चरम गरीबी अभी भी सिर्फ 5.3% स्तर पर आ जाती है, जो अत्यधिक प्रशंसनीय संख्या है।
इस रिपोर्ट की एक और बड़ी उपलब्धि यह रही कि भारत ने lower-middle-income poverty line ($3.65/day) के अंतर्गत गरीबी दर 61.8% से घटाकर 28.1% कर दी है, जिससे 378 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है । यह दर्शाता है कि न केवल चरम गरीबी में, बल्कि मध्यम आय वर्ग poverty में भी बड़ा सुधार हुआ है, जिसने व्यापक आर्थिक समावेशिता की नींव रखी है।
इन आंकड़ों से यह निष्कर्ष स्पष्ट होता है कि ट्रम्प का “dead economy” कहने वाला बयान न केवल अपप्रमाणित था, बल्कि IMF एवं World Bank जैसी संस्थाओं के ताजातरीन डेटा के प्रकाश में पूरी तरह असंगत प्रतीत होता है। वास्तविक GDP वृद्धि स्थिर रूप से 6.4% बनी हुई है, nominal GDP ~$4.19 ट्रिलियन है, जबकि PPP के आधार पर GDP ~$17.6 ट्रिलियन है—इससे भारत विश्व में nominal रैंक में चौथे स्थान पर और PPP रैंक में तीसरे स्थान पर है।
वास्तव में, IMF ने वैश्विक GDP वृद्धि आंकलन को 3.0% (2025) और 3.1% (2026) तक बढ़ाते हुए यह बताने की कोशिश की है कि वैश्विक संरचना में सुधार हो रहा है, और भारत उस वैश्विक विकास इंजन का अग्रदूत बना हुआ है । अमेरिका की वृद्धि दर क्रमशः 1.9% (2025) और 2.0% (2026) अनुमानित की गयी है जबकि चीन की वृद्धि भी 4.8% दर्ज की गयी है । इसलिए “dead economy” जैसा वर्णन न केवल अतिशयोक्तिपूर्ण है, बल्कि तुलना की दृष्टि से पूरी तरह गलत है।
वाणिज्य‑कानूनी दृष्टिकोण से देखें तो इस तरह का राजनीतिक बयान—जिसमें आर्थिक उत्पादकता और वृद्धि को निराधार रूप से नकारा जाए—निवेश धारणा और व्यापार वार्ताओं पर गम्भीर प्रभाव डाल सकता है। WTO के मानदंडों के अनुसार, किसी देश की आर्थिक प्रतिष्ठा को प्रभावित करने वाले बयान सहजे चिंतन और प्रमाण‑आधारित होने चाहिए। अतः, एक अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड लॉ विशेषज्ञ के रूप में मेरा सुझाव है कि ऐसे बयानों को सतत परीक्षण, अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ों से मिलान, और न्यायिक दृष्टिकोण से संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त, IMF के Article IV Review में यह उल्लेख किया गया है कि भारत की विनिमय दर (exchange rate) अभी तक “stabilised” ही है, और शीर्ष संस्थान ने अधिक लचीलापन अपनाने की सलाह दी है ताकि बाहरी आर्थिक झटकों को बेहतर ढंग से सहने की स्थिति तैयार की जा सके । IMF ने यह भी बतलाया कि headline inflation लक्ष्य के करीब 4% रहेगा, और चालू खाता घाटा अपेक्षाकृत सीमित -1.3% of GDP रहेगा, जिससे वित्तीय स्थिरता बनी रहती है ।
सरकारी नीति‑दृष्टि से IMF ने रोजगार सृजन, पूँजी निवेश वृद्धि, कामकाजी श्रमिकों का पुनः कौशल विकास, भूमि सुधार, और व्यापार प्रतिबंधों में कमी जैसी नीतियों को प्रमुख प्राथमिकता मानने की सलाह दी है । इन सुधारों के माध्यम से न केवल आर्थिक वृद्धि निरंतर बनी रहती है, बल्कि उसका लाभ व्यापक समाज तक पहुँचना भी सुनिश्चित होता है, डोनाल्ड ट्रम्प का भारत की अर्थव्यवस्था को “Dead Economy” कहना पूंजी, नीति, और प्रतिशत वृद्धि के प्रमाणों से मेल नहीं खाता। IMF एवं World Bank के ताजा आंकड़े—रियल GDP वृद्धि, poverty reduction, poverty ratio at multiple thresholds, nominal व PPP GDP रैंकिंग जैसे—सब स्पष्ट करते हैं कि भारत न केवल आर्थिक वृद्धि में अग्रणी है, बल्कि वैश्विक समावेशिता और सामाजिक परिवर्तन में भी निरंतर प्रगति कर रहा है।
एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून विशेषज्ञ और अधिवक्ता के रूप में मैं पुनः यही कहना चाहूँगा कि आर्थिक बहसों में राजनीति से आगे बढ़कर सच्चे आँकड़ों एवं विशिष्ट संदर्भों की कसौटी पर विचार किया जाए। भारत आज एक सशक्त, जिम्मेदार, और गतिशील वैश्विक अर्थव्यवस्था की तरह स्थापित है—और केवल भावनात्मक, अतिशयोक्तिपूर्ण बयान उस प्रतिष्ठा को झूठलाते हैं।
लेखक : शीराज़ कुरैशी, अधिवक्ता एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून विशेषज्ञ है...