देश में लम्बे समय तक आक्रान्ताओं का शासन रहा है। मीर जाफरों की जमातों ने कभी लुटेरों को सुल्तान बनाया तो कभी आतिताइयों को ताज पहना दिया। कभी कट्टरता की क्रूरता से मानवतावादियों को गुलाम बनवाया तो कभी षडयंत्रकारी व्यापारियों को सिंहासन पर बैठा दिया। गुलामी काल में सत्ताधारियों की चापलूसी करने वालों ने अपने ही देशवासियों का खून चूसने, विलासतापूर्वक जीवन जीने तथा मनमानी करने में कोई कमी नही छोडी। शासकों ने ऐसे गद्दारों को सम्मानित किया, उपाधियों से विभूषित किया और वासिन्दों से जबरन वसूली गई सम्पत्ति में से दिया जाता बडा हिस्सा। मीरजाफरों को सेवा काल में मोटी पगार, थैली भर भत्ते और बेतहाशा इनाम दिया जाते रहे। शरीर कमजोर होने पर उनको बिना काम किये ही नियमित रूप से भारी भरकम धनराशि वाली पेन्शन दी जाती रही। उसकी मौत के बाद विधवा को भी पेन्शन पाने का हक दिया गया ताकि देश में गद्दारों की फौज खडी करके उनसे ही उनके देशवासियों का शोषण कराया जा सके। यह सब लम्बे समय तक चलता रहा। जुल्म की इन्तहां हो जाने पर राष्ट्रभक्तों ने संगठित होकर गोरों के खिलाफ खूनी जंग छेड दी। फांसी के फंदों पर लटकर भी देश में स्वाधीनता की मशाल जलाये रखी। विद्रोह की आग ने दावानल का विकराल रूप ले लिया। ऐसे में बाध्य होकर षडयंत्रकारी गोरों ने अपने ही देश में पढकर आये चन्द खास लोगों को विभाजनकारी सत्ता हस्तांतरित कर दी। विशाल भूभाग के टुकडे-टुकडे करके आस्तीनों में सांप पैदा कर दिये गये। पूर्व निर्धारित योजना के तहत गोरों के खास लोगों ने अपने आका के इशारे पर दीर्घकालीन घातक परिणामों वाला संविधान तैयार किया और आम आवाम पर थोप दिया। कहने के लिए तो गणतंत्र है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के रूप में तीन स्तम्भ हैं परन्तु हकीकत में वह गुड लगी छुरी ही थी जो बढते समय के साथ घातक सिद्ध होती चली गई। आजादी के प्रारम्भिक काल में संविधान के रचनाकारों ने जमकर सत्ता-सुख भोगा। परिवारवाद की परम्परा प्रारम्भ कर दी। परिवार के सदस्यों की वफादरी करने वालों को पार्टी में ओहदे दिये जाने लगे। विरोध करने वालों को गोरों की नीतियों के तहत कुचला जाने लगा। भय का वातावरण निर्मित होता चला गया। कार्यपालिका की पीठ पर हाथ रखकर मनचाहे काम करवाये जाते रहे। प्रतिभाशाली अधिकारियों-कर्मचारियों ने लोक सेवक के पद को लोक शासक के रूप में परिवर्तित कर लिया। बढते समय के साथ वे अपने अधिकारों का दायरा बढाते चले गये। हालात यहां तक पहुंच गये कि वर्तमान में यदि जिले में तैनात कार्यपालिका का मुखिया न चाहे तो विधायिका का शार्षस्थ व्यक्ति भी उसके जिले में कदम नहीं रख सकता। पब्लिक सर्वेन्ट ने पब्लिक आफीसर बनकर समूचे तंत्र पर कब्जा कर लिया। इस लाइलाज हो चुकी बीमारी का इलाज करने के उद्देश्य से देश की राजधानी में कर्तव्य पथ पर कर्तव्य भवन परिसर के रूप मे एक अतिमहात्वाकांक्षी परियोजना तैयार की गई जिसमें केन्द्रीय मंत्रालयों, विभागों, अनुभागों आदि को एक ही परिसर में समायोजित किया जा रहा है ताकि अन्तर्विभागीय सम्पर्क हेतु सुविधा हो सके। ऐसे में जहां खर्चों में भारी कमी आयेगी वहीं विभागों का आपसी तालमेल भी बेहतर हो सकेगा। इस परिसर का निर्माण सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत किया जा रहा है जिसमें अत्याधुनिक सुविधायें, सुरक्षात्मक संसाधन, सीसीटीवी कैमरे, सुसज्जित सभागार सहित समस्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखा गया है। सेन्ट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत इस परिसर को विकसित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में जिस कर्तव्य भवन-3 का उद्घाटन किया वो परिसर में बनाये जाने वाले दस कॉमन सेंट्रल सेक्रेटेरिएट भवनों की श्रंखला में से पहला है। दो अन्य भवन भी लगभग तैयार हो चुके हैं जिसका उद्घाटन अगले माह होने की संभावना है। प्रधानमंत्री ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा था कि कर्तव्य भवन सिर्फ इमारत का नाम भर नहीं है। ये करोड़ों देशवासियों के सपनों को साकार करने की तपोभूमि है। अमृत काल में इन्हीं भवनों में विकसित भारत की नीतियां बनेंगी। विकसित भारत के लिए यहीं से महत्वपूर्ण निर्णय होंगे। आने वाले दशकों में यहीं से राष्ट्र की दिशा तय होगी। हम आधुनिक भारत के निर्माण से जुड़ी उपलब्धियों के साक्षी बन रहे हैं। कर्तव्य पथ, नया संसद भवन, नया रक्षा भवन, भारत मंडपम्, यशोभूमि, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा और अब कर्तव्य भवन। प्रधानमंत्री ने देश में पारदर्शिता से कोसों दूर पहुंच चुके कार्यपालिका तंत्र के अतिगोपनीय केबिन कल्चर, साहबगिरी-बाबूगिरी व्यवस्था, फाइल-फोल्डर लाकिंग सिस्टम जैसे मनमाने प्रबंधन को सुगम बनाने की गरज से खुले कार्यालयों का सिद्धान्त अपनाया है। ऐसा होते ही एडमिनिस्ट्रेटिव सिविल सर्विस सेंट्रल सेक्रेटेरिएट सर्विस फोरम ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर कर्तव्य भवन-3 में बैठने की व्यवस्था पर आपत्ति दर्ज की। यह संगठन 13,000 से अधिक अधिकारियों के सामूहिक हितों की रक्षा करने का दम भरता है। फोरम के महासचिव यतेन्द्र चंदेल की ओर से लिखे गये पत्र में कहा है कि एडमिनिस्ट्रेटिव सिविल सर्विस के अधिकारियों को निर्धारित जगह से कम जगह दी जा रही है जिससे उनकी गोपनीयता और दक्षता प्रभावित हो रही है। वहीं कार्यालयीन कर्मचारियों की ओर प्रेषित शिकायती पत्र में स्पष्ट किया गया है कि इस तरह की व्यवस्था उन अधिकारियों के लिए भी एक निराशाजनक माहौल बनाती है, जो सही मायने में केंद्रीय सचिवालय की मुख्य स्टाफिंग संरचना से जुड़े हुए हैं। गोपनीयता के लिए वातावरण होना ही चाहिये। वास्तविकता यह है कि खुले तौर पर काम करने के दौरान सहकर्मियों, वरिष्ठ और कनिष्ठ सहयोगियों तक फोन पर होने वाली गोपनीय बातचीत, छुपकर तैयार किये जाने वाले गोपनीय दस्तावेजों, नियमों को तोडमडोर कर बनायी जाने वाली नोटशीट्स जैसे कामों की जानकारी पहुंचने का भय पैदा हो रहा है। लम्बे समय से बन्द केबिन, बडे चैम्बर और लग्जरी कार्यालयों के आदी हो चुकी कार्यपालिका के लिए कर्तव्य भवन में खुले रूप में बैठकर कार्य करना उनकी आदत के विरुद्ध है। ऐसे में फोरम के नाम पर भीडतंत्र का सिद्धान्त अपनाकर दबाव बनाने वाले इस तरह के प्रयासों को किसी भी हालत में राष्ट्रहित में आदरणीय नहीं माना जा सकता। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।